Shanidev and Shiva
Jun 17 2016 0 Comments Tags: mantra, mythology, remedy, Saturn, Shani, Shiva
धार्मिक मान्यता है कि शनिदेव परम शिव भक्त हैं और शिव के आदेश के अनुसार ही शनि जगत के हर प्राणी को कर्मों के आधार पर दण्ड देते हैं। इसीलिए शनि या राहु आदि ग्रह पीड़ा शांति के लिए शिव की पूजा विशेषतया पर शनिवार,सोमवार को बहुत ही कारगर होती है।
ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक क्रूर और तामसी स्वभाव के ग्रहों शनि और राहु के कुण्डली में बुरे योग गंभीर और मृत्यु के समान शारीरिक और मानसिक
पीड़ाओं को देने वाले भी साबित हो सकते हैं। इन ग्रहों के योग से ही किसी व्यक्ति की कुण्डली में कालसर्प, पितृदोष बनते हैं। माना जाता है कि इन दोषों से किसी भी व्यक्ति के जीवन में गहरी मानसिक परेशानियां भी पैदा होती है।
धार्मिक मान्यताओं में सारे ग्रह काल गणना के आधार हैं और चूंकि काल पर शिव का नियंत्रण है,इसलिए महाकाल यानी शिव की उपासना ग्रह दोषों की शांति के लिए बहुत असरदार मानी गई है। जिसमें शिव के ऐसे अचूक मंत्र के जप का महत्व है,जो ग्रह पीड़ा ही दूर नहीं करता बल्कि मनचाहे फल भी देता है।यह अद्भुत और प्रभावकारी मंत्र है - शिव गायत्री मंत्र। शिव पूजा की सामान्य विधि के साथ यह शिव गायत्री मंत्र -
- शनिवार, सोमवार, शनि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव को गंध,अक्षत,पुष्प,धूप, दीप,नैवेद्य,फल,पान,सुपारी,लौंग,इलायची चढाएं। इसके बाद इस शिव गायत्री के दिव्य मंत्र का जप करें -
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे।
महादेवाय धीमहि।
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।।
शनि देव ने शिव को गुरु माना !
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करें न कोए।
जो सुख में सुमिरन करें तो दुख काहे को होए।।
शिवजी के अमर अवतार भैरव जी, आदि शक्ति के प्रचंड स्वरुप भगवती महाकाली और मृत्यु के नियंत्रक यमराज जी के समान ही देवाधि देव शनि देव जी के बारे में अनेक भ्रांत धारणाएं हमारे समाज में व्याप्त हैं। ग्रह के रुप में सर्वाधिक क्रुर और राहु केतु के समान ही केवल अशुभ फलदायक ग्रह मानने की गलत धारणा के जहां अधिकांश व्यक्ति शिकार हैं। वहीं शनि देव जी को क्रूर देव मानने की भावना तो जन सामान्य पर इस प्रकार हावी हो चुकी है कि आपका नाम लेना तक अधिकंश व्यक्ति उचित नहीं समझते
वैसे इसका प्रमुख कारण हमारा अज्ञान ही है। वास्तव में सभी महानताएं शनि देव जी में हैं। आप भगवान भास्कर जैसे अर्थात् सूर्य देव के पुत्र हैं और इस रुप में यमराज के सगे बड़े भाई है। भगवान महादेव जी आपके गुरु और रक्षक हैं तथा महादेव जी के आदेश पर ही दुष्टो को दण्ड देने के कार्य आप नियमित रुप से करते हैं। फिर इसमें शनि देव का क्या दोष है इस बारे में स्वयं शनि देव जी ने अपनी पत्नी से कहा कि यह सत्य है कि मैं भगवान शिव के आदेश से दुष्टो को दण्ड देता हूं।परन्तु जो व्यक्ति पापी नहीं हैं.... उसे मैं कभी त्रास नहीं दूंगा। जो क्यक्ति मेरी, मेरे गुरु शिव की, मेरे मित्र हनुमान जी की नियमित अराधना उपासना करेगा उसको इस लोक में मैं सभी सुख तो दूंगा ही अंत में भगवान शिव के चरणों में उसे वास भी प्राप्त हो जाएगा।
प्रख्यात ज्योतिर्विदों ने शनि के बारे में अधिक इसलिए लिखा क्योंकि आकाश में स्थित ग्रहों में अकेला शनि ही ऐसा ग्रह है जिसके बारे में कुछ विशेष लिखा जा सकता है। जातक के जीवन पर शनि अतिशीघ्र प्रभाव डालता है, इसलिए इसे " अतिप्रभावी ग्रह " माना गया है। शनि ग्रह जन समुदाय को शीघ्र प्रभावित करता है।मनमुटाव, रंजिश, कलह, कारावास, हत्या, दीर्घकालीन शारीरिक व्याधियां, उपेक्षा, अपमान, असफलता और बाधाओं के अतिरिक्त संबंधों में कटुता और घोर निराश का अहंकार ऐसी कठपुतली है जिनकी डोर शनि के हाथों में है।
शनि कर्मयोग का पक्षधर है दूसरे शब्दों में शनि जिनके लिए अनुकूल होता है, वो उधमी, कर्मयोगी एवं मेहनतशील होते हैं। उनका परिश्रम उन्हें शनि के आंतकों से मुक्त करके पुरस्कृत करता है। वृष लग्न के जातक व जातिकाओं के लिए शनि क्षेष्ट व योग कारक ग्रह है।क्योंकि यहां वो भाग्याधिपति व कर्माधिपति दोनों होते हैं। ऐसे जातकों के जन्म चक्र में जहां भी शनि स्थित हो उस भाव से संबंध फलों की वृद्धि होती है। शनि अपनी दशा में अत्यंत शुभ फल प्रदान करता है। तुला लग्न में जन्म लेने वाले जातकों के लिए भी शनि सर्वक्षेष्ट फल दाता एवं योगकारक होता है। यहां शनि चौथे और पांचवें भाव का स्वामी होने के कारण शुभ फलदायी होता है।इस पर भी शनि की क्रूर प्रवृति और उसके स्वभाव मूलभूत गुणों को कभी अनदेखा नहीं करना चाहिए। परिश्रम,उद्यम और मंदगति शनि की प्रकृति है। इसका उदाहरण इस बात से दिया जा सकता है कि शनि की दशमस्थ स्थिति जातक को उच्च पद तक तो अवश्य ले जाती है। किन्तु इसके लिए जातक को बहुत परिश्रम करना पडेग़ा तथा उसकी उन्नति धीरे धीरे होगी। अत: शनि के फल का विचार करते समय उसके गुणों के साथ उसकी प्रवृति पर भी विचार करना चाहिए।
शास्त्रों में शनिदेव व शनि ग्रह के बारे में वर्णित प्रवृति अधिकांश बातें उनके भयप्रद कुरुप का ही पोषण करती हैं। परन्तु शनि ग्रह के बारे में इस प्रकार की अधिकंश बातें आज मिथ्या सिद्ध हो रही है।शक्तिशाली दूरबीनों से देखने और उपग्रहों के माध्यम से प्राप्त चित्रों एवं अन्य सूचनाओं के आधार पर आज यह प्रमाणित हो चुका है कि नव ग्रहों की बात ही क्या शनि ग्रह आकाश मंडल के सभी ग्रहों से अधिक सुन्दर है।
पौराणिक शनि मंत्र:
ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
तांत्रिक शनि मंत्र: (बीज मंत्र)
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
समस्त चराचर प्राणियों का कल्याण करो प्रभु शनि देव !!
भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरुपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्।।
वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररुपिणम्।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चंद्रः सर्वत्र वनद्यते।।
कष्ट हरो,,,काल हरो,,,दुःख हरो,,,दारिद्रय हरो,,,
हर,,.हर,,,महादेव !!
Related Posts
-
Shri Kedarnath Jyotirlinga
Shri Kedarnath is one of the best known Shivasthalams in India and is considered to be one of the most sacred pilgrim...
-
Shri Bhimashankar Jyotirlinga
Shri Bhimashankar in Maharashtra is an ancient shrine, enshrining Bhimashankara one of the 12 Jyotirlingas of Shiva. ...
-
Shri Tryambakeshwar Jyotirlinga
A 28 km (18 mile) journey from pilgrim town Nashik takes a tourist to Trimbakeshwar, 10th sacred Jyotirlinga in the D...
-
Shri Grishneshwar Jyotirlinga
Grishneshwar Jyotirlinga is one of the 12 Jyotirlinga shrines mentioned in the Shiva Purana (kotirudra sahinta, Ch.32...
Share on Whatsapp
0 comments
Leave a Comment