Maa Dhumavati Ashtak stotra in Sanskrit ( मां धूमावती अष्टक स्तोत्रं )

Jul 09 2020 Tags: 10 Mahavidya, Ashtakam, Das Mahavidya, Dhoomavati, Dhumavati, Dus Mahavidya, sanskrit, stotram

Maa Dhumavati is the seventh of the ten Mahavidya Goddesses. Devi Dhumavati is an old widow and is associated with things considered inauspicious and unattractive. She is always hungry and thirsty who initiates quarrels. Maa Dhumavati Ashtak stotra is dedicated to Maa Dhumavati and chanting of this stotra regularly destroys enemies.

शत्रुओं का नाश कर देता हैं धूमावती अष्टक स्तोत्रं का पाठ, अवश्य पढ़ें । यह तो सभी जानते हैं कि मां धूमावती दस महाविद्याओं में ७वीं स्थान की साधना मानी गई है। दस महाविद्या की विशेष देवी मां धूमावती के अष्टक स्तोत्र का पाठ करने से समस्त शत्रुओं का जड़ से नाश हो जाता है तथा जीवन भयरहित हो जाता है। अत: जीवन में उन्नति और शत्रु नाश के लिए धूमावती अष्टक स्तोत्रं अवश्य पढ़ना चाहिए। 

मां धूमावती अष्टक स्तोत्रं

।।अथ स्तोत्रं।।

प्रातर्या स्यात्कुमारी कुसुमकलिकया जापमाला जपन्ती,
मध्याह्ने प्रौढरूपा विकसितवदना चारुनेत्रा निशायाम्।
सन्ध्यायां वृद्धरूपा गलितकुचयुगा मुण्डमालां,
वहन्ती सा देवी देवदेवी त्रिभुवनजननी कालिका पातु युष्मान्।।१।।

बद्ध्वा खट्वाङ्गकोटौ कपिलवरजटामण्डलम्पद्मयोने:,
कृत्वा दैत्योत्तमाङ्गैस्स्रजमुरसि शिर शेखरन्तार्क्ष्यपक्षै:।
पूर्णं रक्तै्सुराणां यममहिषमहाशृङ्गमादाय पाणौ,
पायाद्वो वन्द्यमानप्रलयमुदितया भैरव: कालरात्र्याम्।।२।।

चर्वन्तीमस्थिखण्डम्प्रकटकटकटाशब्दशङ्घातम्,
उग्रङ्कुर्वाणा प्रेतमध्ये कहहकहकहाहास्यमुग्रङ्कृशाङ्गी।
नित्यन्नित्यप्रसक्ता डमरुडिमडिमां स्फारयन्ती मुखाब्जम्,
पायान्नश्चण्डिकेयं झझमझमझमा जल्पमाना भ्रमन्ती।।३।।

टण्टण्टण्टण्टटण्टाप्रकरटमटमानाटघण्टां वहन्ती,
स्फेंस्फेंस्फेंस्कारकाराटकटकितहसा नादसङ्घट्टभीमा।
लोलम्मुण्डाग्रमाला ललहलहलहालोललोलाग्रवाचञ्चर्वन्ती,
चण्डमुण्डं मटमटमटिते चर्वयन्ती पुनातु।।४।।

वामे कर्णे मृगाङ्कप्रलयपरिगतन्दक्षिणे सूर्यबिम्बङ्कण्ठे,
नक्षत्रहारंव्वरविकटजटाजूटके मुण्डमालाम्।
स्कन्धे कृत्वोरगेन्द्रध्वजनिकरयुतम्ब्रह्मकङ्कालभारं,
संहारे धारयन्ती मम हरतु भयम्भद्रदा भद्रकाली।।५।।

तैलाभ्यक्तैकवेणी त्रपुमयविलसत्कर्णिकाक्रान्तकर्णा,
लौहेनैकेन कृत्वा चरणनलिनकामात्मन: पादशोभाम्।
दिग्वासा रासभेन ग्रसति जगदिदंय्या यवाकर्णपूरा,
वर्षिण्यातिप्रबद्धा ध्वजविततभुजा सासि देवि त्वमेव।।६।।

सङ्ग्रामे हेतिकृत्वैस्सरुधिरदशनैर्यद्भटानां,
शिरोभिर्मालामावद्ध्य मूर्ध्नि ध्वजविततभुजा त्वं श्मशाने प्रविष्टा।
दृष्टा भूतप्रभूतैः पृथुतरजघना वद्धनागेन्द्रकाञ्ची,
शूलग्रव्यग्रहस्ता मधुरुधिरसदा ताम्रनेत्रा निशायाम्।।७।।

दंष्ट्रा रौद्रे मुखेऽस्मिंस्तव विशति जगद्देवि सर्वं क्षणार्द्धात्,
संसारस्यान्तकाले नररुधिरवशा सम्प्लवे भूमधूम्रे।
काली कापालिकी साशवशयनतरा योगिनी योगमुद्रा रक्तारुद्धिः,
सभास्था भरणभयहरा त्वं शिवा चण्डघण्टा।।८।।

धूमावत्यष्टकम्पुण्यं सर्वापद्विनिवारकम्,
य: पठेत्साधको भक्त्या सिद्धिं व्विन्दन्ति वाञ्छिताम्।।९।।

महापदि महाघोरे महारोगे महारणे,
शत्रूच्चाटे मारणादौ जन्तूनाम्मोहने तथा।।१०।।

पठेत्स्तोत्रमिदन्देवि सर्वत्र सिद्धिभाग्भवेत्,
देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगा:।।११।।

सिंहव्याघ्रादिकास्सर्वे स्तोत्रस्मरणमात्रत:,
दूराद्दूरतरं य्यान्ति किम्पुनर्मानुषादय:।।१२।।

स्तोत्रेणानेन देवेशि किन्न सिद्ध्यति भूतले,
सर्वशान्तिर्ब्भवेद्देवि ह्यन्ते निर्वाणतां व्व्रजेत्।।१३।।

।।इत्यूर्द्ध्वाम्नाये धूमावतीअष्टक स्तोत्रं समाप्तम्।।

Related Posts



← Older Posts Newer Posts →

Download our mobile app today !

To add this product to your wish list you must

Sign In or Create an Account

Back to the top
Global Shipping We deliver all around Globe
Easy Returns No questions asked 7 days return policy
Secure Checkout 100% Secure Payment Gateway
Paypal Accepted Pay for your orders through Paypal